मनीषा शर्मा। ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कथावाचक धीरेंद्र शास्त्री की यात्रा को राजनीति से प्रेरित बताते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म की अपनी मान्यताएं हैं, और इस यात्रा का उद्देश्य इनसे भटक कर राजनीति की दिशा में बढ़ना है। शंकराचार्य ने इस यात्रा को एक पार्टी विशेष के पक्ष में समाज को संगठित करने की कोशिश करार दिया।
रविवार को राजस्थान के धौलपुर के राजाखेड़ा में आयोजित धर्मसभा में बोलते हुए उन्होंने कहा कि पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने ‘जात-पात की करो विदाई’ का नारा दिया है। इस नारे के पीछे उद्देश्य जातियों के बीच सामंजस्य स्थापित करना नहीं, बल्कि राजनीतिक लाभ के लिए समाज को संगठित करना है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह धर्म का विषय नहीं है, बल्कि राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है।
जातियों के बीच सामंजस्य और रामराज्य का दृष्टांत
शंकराचार्य ने कहा कि जातियों के बीच सामंजस्य स्थापित करना जरूरी है, लेकिन इसे जात-पात को पूरी तरह मिटाने की कोशिश के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने तुलसीदास कृत रामचरितमानस के उत्तर कांड का उदाहरण देते हुए बताया कि रामराज्य में सभी वर्णों और आश्रमों को उनके धर्म के अनुसार चलने का निर्देश था। इस नीति के कारण समाज में एकता और शांति स्थापित हुई थी।
उन्होंने कहा कि धर्म का उद्देश्य समाज में संतुलन और समरसता लाना है, न कि इसे राजनीतिक एजेंडे के तहत प्रयोग करना। जातिगत आधार पर वोट हासिल करने की प्रवृत्ति को रोकना जरूरी है, लेकिन इसे धर्म का हिस्सा बनाकर प्रस्तुत करना गलत है।
राजनीति और धर्म के बीच फर्क का सवाल
शंकराचार्य ने कहा कि राजनीति में हर पार्टी अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए अलग-अलग रणनीति अपनाती है। धीरेंद्र शास्त्री की यह यात्रा भी उसी रणनीति का हिस्सा है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि समाज को जातिगत आधार पर बांटने के बजाय, जातियों के बीच तालमेल और सामंजस्य पर जोर दिया जाना चाहिए।