शोभना शर्मा। राजस्थान में 6 मार्च से दसवीं बोर्ड परीक्षा शुरू हो गई है, लेकिन बूंदी जिले से एक अनूठा मामला सामने आया, जहां शिक्षा विभाग को परीक्षा शुरू होने के 25 मिनट बाद एक छात्र को घर से बुलाकर परीक्षा दिलवानी पड़ी। यह मामला 10वीं कक्षा के छात्र कुलदीप सोनी से जुड़ा हुआ है, जिसे कम उपस्थिति के कारण परीक्षा देने से रोका गया था। हालांकि, छात्र के परिवार ने इस फैसले को चुनौती दी और अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद न्यायालय के आदेश पर छात्र को परीक्षा देने का मौका मिला।
मां की मौत के बाद मानसिक अवसाद में था छात्र
छात्र कुलदीप सोनी के जीवन में पहले ही कई कठिनाइयां आ चुकी थीं। उसके परिजनों के अनुसार, उसके पिता ने उसकी मां पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी थी, जिससे उसकी मौत हो गई। इस दर्दनाक घटना के बाद, पिता ने बच्चों की कस्टडी लेने के लिए कोर्ट में केस किया था, लेकिन कुलदीप और उसकी बहन, पिता के पास जाने से डरते थे और अपने अन्य परिजनों के साथ गुप्त रूप से रह रहे थे।
इस पारिवारिक उथल-पुथल और मानसिक तनाव के चलते कुलदीप कुछ समय के लिए स्कूल नहीं जा पाया, जिससे उसकी उपस्थिति कम हो गई। हालांकि, जब अदालत ने उसके पिता को बच्चों की जिम्मेदारी संभालने का आदेश दिया, तब कुलदीप वापस स्कूल गया। लेकिन स्कूल प्रशासन ने उसकी अनुपस्थिति को आधार बनाकर परीक्षा देने से रोकने का फैसला किया।
एडमिट कार्ड जारी होने के बावजूद परीक्षा से रोका गया
राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर ने कुलदीप सोनी का एडमिट कार्ड जारी कर दिया था, जिससे यह साफ था कि वह परीक्षा देने के योग्य है। लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी ने उसकी उपस्थिति को लेकर आपत्ति जताई और परीक्षा से वंचित कर दिया। कुलदीप और उसके परिवार ने स्कूल प्रशासन से कई बार अनुरोध किया, लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी।
इसके बाद, कुलदीप ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और जिला कलेक्टर अक्षय गोदारा से भी गुहार लगाई, लेकिन फिर भी शिक्षा विभाग ने अपनी मनमानी जारी रखी और 75% उपस्थिति के नियम का हवाला देते हुए परीक्षा से रोक दिया।
न्यायालय से मिली राहत, परीक्षा से 25 मिनट पहले बुलाया गया घर से
जब शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने परीक्षा देने की अनुमति नहीं दी, तब वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश पारीक की सलाह पर राजस्थान बीज निगम के पूर्व निदेशक चर्मेश शर्मा के साथ कुलदीप ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। बुधवार शाम को न्यायालय में परिवाद दायर किया गया, जिसमें छात्र ने अपने भविष्य को बचाने की गुहार लगाई।
न्यायालय ने तत्काल प्रभाव से जिला शिक्षा अधिकारी को नोटिस जारी कर परीक्षा दिलाने का आदेश दिया। यह आदेश गुरुवार सुबह परीक्षा शुरू होने से ठीक पहले आया, जिसके बाद शिक्षा विभाग के अधिकारी तुरंत हरकत में आए और कुलदीप को घर से बुलाकर परीक्षा दिलवाई।
परीक्षा देकर खुश हुआ छात्र, न्यायालय को कहा धन्यवाद
जब कुलदीप को परीक्षा देने का अवसर मिला, तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। परीक्षा समाप्त होने के बाद उसने उन सभी लोगों का धन्यवाद किया जिन्होंने उसकी मदद की। उसने कहा कि वह पूरी तरह उम्मीद छोड़ चुका था और उसे लगने लगा था कि उसका भविष्य अंधकार में चला जाएगा। लेकिन न्यायालय के आदेश ने उसे राहत दी और वह अपनी परीक्षा दे सका। इस पूरे मामले ने शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या किसी छात्र को सिर्फ उपस्थिति के आधार पर परीक्षा से वंचित किया जा सकता है, जब उसने मानसिक अवसाद और पारिवारिक समस्याओं के कारण स्कूल नहीं जा पाया था? क्या शिक्षा व्यवस्था इतनी कठोर हो सकती है कि वह किसी छात्र की मानसिक स्थिति को समझने से इनकार कर दे?
क्या शिक्षा विभाग से होगी जवाबदेही तय?
इस घटना ने राजस्थान के शिक्षा विभाग की नीतियों और प्रशासनिक लापरवाही को उजागर किया है। अगर न्यायालय समय रहते हस्तक्षेप नहीं करता, तो कुलदीप का एक साल बर्बाद हो सकता था।