- सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया।
- कोर्ट ने कहा कि चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।
- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को तीन हफ्ते में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों को कितना पैसा और कौन लोग देते हैं इसका खुलासा होना चाहिए।
- याचिकाकर्ताओं ने कहा कि चुनावी बॉन्ड से जुड़ी राजनीतिक फंडिंग पारदर्शिता को प्रभावित करती है और मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने कहा कि यह योजना सूचना के अधिकार का उल्लंघन है और यह जनता के हित में नहीं है।
कोर्ट ने क्या कहा?
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना पारदर्शिता की कमी से ग्रस्त है और यह मतदाताओं को यह जानने का अधिकार छीन लेती है कि राजनीतिक दलों को कौन फंडिंग कर रहा है। उन्होंने कहा कि यह योजना राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाने में विफल रहती है और यह काले धन को राजनीतिक प्रणाली में प्रवेश करने की अनुमति देती है।
सरकार का क्या तर्क था?
केंद्र सरकार ने चुनावी बॉन्ड योजना का बचाव करते हुए कहा कि यह राजनीतिक दलों को पारदर्शी तरीके से धन जुटाने में मदद करती है। सरकार ने यह भी तर्क दिया कि यह योजना दानदाताओं को राजनीतिक दलों से किसी प्रतिशोध का सामना करने से बचाती है।
याचिकाकर्ताओं का क्या तर्क था?
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि चुनावी बॉन्ड योजना सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है और यह मतदाताओं को यह जानने का अधिकार छीन लेती है कि राजनीतिक दलों को कौन फंडिंग कर रहा है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह योजना शेल कंपनियों के माध्यम से काले धन को राजनीतिक प्रणाली में प्रवेश करने की अनुमति देती है।
फैसले का क्या असर होगा?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का राजनीतिक दलों और चुनाव प्रणाली पर बड़ा असर होगा। अब राजनीतिक दलों को पारदर्शी तरीके से धन जुटाने के लिए नए तरीके खोजने होंगे। यह फैसला काले धन को राजनीतिक प्रणाली में प्रवेश करने से रोकने में भी मदद कर सकता है।