शोभना शर्मा। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद उसमें किसी भी प्रकार के नियमों में बदलाव नहीं किया जा सकता। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने गुरुवार को यह फैसला सुनाया, जिसमें जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस पंकज मित्थल और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे। संविधान पीठ ने 18 जुलाई 2023 को इस मामले की सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था, जिसे अब जारी किया गया है।
राजस्थान हाईकोर्ट की विभागीय ट्रांसलेटर भर्ती-2009 से जुड़ा मामला
यह मामला राजस्थान हाईकोर्ट की 2009 की विभागीय ट्रांसलेटर भर्ती से संबंधित है, जिसमें भर्ती प्रक्रिया के दौरान नियमों में बदलाव किए गए थे। दिसंबर 2009 में आयोजित इस परीक्षा में प्रारंभिक परिणाम जारी होने के बाद, हाईकोर्ट प्रशासन ने नए नियम लागू किए, जिसमें चयन के लिए 75% से अधिक अंक की अनिवार्यता रखी गई। इस बदलाव के कारण केवल तीन अभ्यर्थी पात्र रह गए, और अन्य 10 पद खाली छोड़ दिए गए।
अभ्यर्थियों का संघर्ष और सुप्रीम कोर्ट में याचिका
इस निर्णय के बाद चयन प्रक्रिया से वंचित हुए अभ्यर्थियों में से 7 ने इस नियम परिवर्तन को राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन उनकी याचिका मार्च 2011 में खारिज कर दी गई। इसके बाद, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट में मामला तीन जजों की बेंच के सामने पेश हुआ, जिन्होंने इसे संवैधानिक प्रश्न मानते हुए 5 मार्च 2013 को संविधान पीठ को रेफर कर दिया।
भर्ती प्रक्रिया में नियम बदलाव के खिलाफ संविधान पीठ का फैसला
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि एक बार भर्ती प्रक्रिया शुरू हो जाने पर उसके नियमों में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया तब मानी जाती है जब रिक्तियों को भरने के लिए आवेदन आमंत्रित किए जाते हैं और अधिसूचना जारी होती है। पीठ ने स्पष्ट किया कि अगर भर्ती विज्ञप्ति में स्पष्ट रूप से यह उल्लेख किया गया हो कि भर्ती के नियमों में बदलाव हो सकता है, तभी नियमों में संशोधन की अनुमति होगी। इसके साथ ही यह बदलाव संविधान के आर्टिकल-14, समानता के अधिकार, का उल्लंघन नहीं कर सकता है।
भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता
संविधान पीठ ने जोर देते हुए कहा कि सभी भर्ती प्रक्रियाएं पारदर्शी, गैर-मनमानी और तर्कसंगत होनी चाहिए। भर्ती प्रक्रिया के लिए नियम तय करने का अधिकार निकायों को है, परंतु इसका पालन समानता और निष्पक्षता के आधार पर होना चाहिए। इस मामले में हाईकोर्ट प्रशासन ने परिणाम के बाद नियमों में बदलाव किया, जिससे कई अभ्यर्थी चयन से वंचित हो गए थे। पीठ ने इस प्रकार के निर्णय को अनुचित और असंवैधानिक करार दिया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: भविष्य में भर्ती प्रक्रिया में नियम परिवर्तन नहीं
इस फैसले के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि आगे से किसी भी भर्ती प्रक्रिया में बिना उचित कारण और नियमावली में स्पष्ट निर्देश के, बीच में बदलाव करना असंवैधानिक माना जाएगा। यह फैसला न केवल भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा देगा, बल्कि इसे कानूनी रूप से भी संगठित करेगा।