शोभना शर्मा। बूंदी जिले और हाड़ौती क्षेत्र में लोक देवता तेजाजी की पूजा और उनके नाम पर आयोजित मेलों की शुरुआत तेजा दशमी से हो जाती है। हर साल तेजा दशमी के मौके पर गांव-गांव में सांस्कृतिक कार्यक्रमों, मेले और धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही भक्तगण अलगोजों की धुनों पर नाचते-गाते हुए तेजाजी के थानकों पर पहुंचते हैं और वहां झंडे की स्थापना करते हैं।
तेजा गायन और अलगोजों की स्वर लहरियां
तेजा दशमी से एक दिन पहले ही गुरुवार की रात से हाड़ौती के गांवों और कस्बों में तेजा गायन की शुरुआत हो जाती है। अलगोजों की मधुर धुनों के बीच भक्तजन तेजाजी की झंडियों के साथ नाचते-गाते उनके थानकों पर पहुंचते हैं। तेजाजी की झंडी की सवारी लाखेरी, नैनवां, आंतरदा, कापरेन, इंदरगढ़, करवर, बूंदी और हिडौंली जैसे स्थानों पर निकाली जाती है। इस सवारी के साथ ही चार दिवसीय तेजा दशमी उत्सव की शुरुआत होती है, जिसमें भक्तजन भारी संख्या में भाग लेते हैं।
कच्ची घोड़ी नृत्य और तेजा ख्याल का आकर्षण
तेजा दशमी पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों की बात करें तो कच्ची घोड़ी नृत्य और तेजा ख्याल प्रमुख आकर्षण होते हैं। हाड़ौती क्षेत्र में प्रचलित तेजा ख्याल में लोक देवता तेजाजी के जीवन से जुड़े सभी पहलुओं को मधुर स्वर में प्रस्तुत किया जाता है। हाड़ौती बोली में होने वाले इस गायन से भक्तजन भावविभोर हो उठते हैं। अलग-अलग मंडलियां तेजा ख्याल प्रस्तुत करती हैं, जो कि मेले में खास आकर्षण का केंद्र होते हैं। इसके साथ ही कच्ची घोड़ी नृत्य ने भी स्थानीय लोगों को रोमांचित कर रखा है। यह नृत्य ग्रामीण लोकसंस्कृति का एक प्रमुख हिस्सा है, जो लोगों को आनंदित करता है।
आंतरदा में सर्प रूप में अवतरित होते हैं तेजाजी
हाड़ौती क्षेत्र में बूंदी जिले का आंतरदा गाँव विशेष रूप से चर्चित है। यहाँ हर साल तेजा दशमी के दिन लोक देवता तेजाजी सर्प के रूप में अवतरित होते हैं। ग्रामीणों के अनुसार, तेजा दशमी से पहले ही यह ज्ञात हो जाता है कि सर्प रूप में तेजाजी कहां प्रकट होंगे। भक्तजन गाजे-बाजे के साथ उनके दर्शन के लिए वहां पहुंचते हैं। तेजाजी के भोपे (पुजारी) के शरीर पर सर्प रूपी तेजाजी रेंगते हैं, जो कि एक दिव्य अनुभव होता है। यह दृश्य देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आंतरदा आते हैं और तेजाजी की महिमा का गुणगान करते हैं।
तेजा दशमी उत्सव की धूम
तेजा दशमी पर तेजाजी के थानकों पर बड़ी धूमधाम से मेलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालु तेजाजी के थानकों पर नाचते-गाते पहुंचते हैं और वहां पर झंडी स्थापित करते हैं। तेजाजी के थानकों पर भक्तजन उनकी पूजा करते हैं और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लेते हैं।
हाड़ौती के लाखेरी, नैनवां, आंतरदा, कापरेन, इंदरगढ़ और करवर जैसे स्थानों पर तेजाजी के थानकों पर चार दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में तेजा दशमी पर होने वाले ये मेले क्षेत्र की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करते हैं।
तेजा दशमी हाड़ौती क्षेत्र का एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, जिसमें लोक देवता तेजाजी की पूजा की जाती है। इस पर्व के दौरान आयोजित मेलों में न केवल भक्तजन तेजाजी के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हैं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को भी समृद्ध करते हैं। आंतरदा में सर्प रूप में तेजाजी का अवतरण और तेजा गायन, कच्ची घोड़ी नृत्य जैसे कार्यक्रम इस पर्व को और भी खास बना देते हैं।