शोभना शर्मा, अजमेर। महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती के अवसर पर अजमेर में तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया गया। यह आयोजन शुक्रवार को शुरू हुआ, जिसमें प्रमुख अतिथि के रूप में गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत उपस्थित रहे। मेले के पहले दिन राज्यपाल देवव्रत ने महर्षि दयानंद और आर्य समाज के योगदान पर चर्चा की और वर्तमान में बढ़ती सामाजिक चुनौतियों पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि आज के माता-पिता अपने बच्चों से दुखी हैं क्योंकि मोबाइल और अन्य तकनीकी उपकरण बच्चों को माता-पिता का दुश्मन बना रहे हैं। ऋषि दयानंद के समय में प्राकृतिक खेती और शुद्ध आहार का महत्व था, लेकिन आज हम अपनी धरती मां को जहरीला बनाने में लगे हुए हैं। कार्यक्रम में केंद्रीय राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी, विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी सहित कई आर्य समाज के वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित थे।
महर्षि दयानंद और आर्य समाज का योगदान
राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने गर्व से कहा कि उनका जीवन जिस रूप में आज है, उसका श्रेय ऋषि दयानंद और आर्य समाज को जाता है। भारत की स्वतंत्रता संग्राम में आर्य समाज की महत्वपूर्ण भूमिका थी और देश का लगभग हर घर ऋषि दयानंद के विचारों से परिचित था।
उन्होंने कहा, “जब भारत अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब पूरा देश आर्य समाज की विचारधारा से प्रभावित था। आर्य समाज ने समाज में जागरूकता फैलाने और सामाजिक सुधार के लिए अभूतपूर्व योगदान दिया।”
गुरुकुल और शिक्षा पर जोर
अपने भाषण में राज्यपाल देवव्रत ने गुरुकुल शिक्षा पद्धति के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि कैसे उनके पिता ने उन्हें गुरुकुल में पढ़ने के लिए भेजा और यह संस्कार उनके जीवन का हिस्सा बने। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी और पोती भी गुरुकुल में ही शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। उनका मानना है कि गुरुकुल शिक्षा पद्धति को आधुनिक शिक्षा के साथ जोड़ा जाना चाहिए ताकि यह विचारधारा प्राचीन परंपराओं के साथ-साथ नए युग के बच्चों के लिए भी प्रासंगिक बनी रहे।
उन्होंने चिंता व्यक्त की कि आज के दौर में गुरुकुलों की संख्या और उनके द्वारा दिए जाने वाले शिक्षण का स्तर घट गया है। पहले गुरुकुलों से योग्य विद्वान और प्रचारक निकलते थे जो आर्य समाज की विचारधारा को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। उन्होंने कहा कि हमें यह सोचना चाहिए कि आज के गुरुकुलों की स्थिति क्यों गिर गई है और इसे पुनर्जीवित करने के लिए क्या किया जा सकता है।
मोबाइल और सोशल मीडिया का प्रभाव
राज्यपाल ने समाज में मोबाइल और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आज के बच्चे मोबाइल और टीवी के आदी हो चुके हैं, जिससे माता-पिता को परेशानी का सामना करना पड़ता है। मोबाइल छीनने पर बच्चे माता-पिता से नाराज हो जाते हैं और परिवार में तनाव बढ़ जाता है।
उन्होंने ड्रग्स और नशे की बढ़ती समस्या पर भी ध्यान आकर्षित किया और कहा कि आज के दौर में बच्चों को इस गंदे वातावरण से बचाने के लिए गुरुकुल और आर्य समाज की विचारधारा को बढ़ावा देना आवश्यक है।
प्राकृतिक खेती और देसी गाय का महत्व
आचार्य देवव्रत ने अपने संबोधन में प्राकृतिक खेती के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद के समय में खेती पूरी तरह प्राकृतिक थी और उसमें किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरकों का उपयोग नहीं होता था। लोग स्वस्थ और निरोगी रहते थे क्योंकि उन्हें शुद्ध और प्राकृतिक आहार मिलता था।
आज, हम धरती के पोषक तत्वों को नष्ट कर रहे हैं और हमारी धरती मां को जहरीला बना रहे हैं। देसी गाय का गोबर और गोमूत्र धरती के लिए वरदान है और इसमें सभी प्रकार के पोषक तत्व होते हैं। उन्होंने कहा कि हमें प्राकृतिक खेती को अपनाना चाहिए और देसी गायों को संरक्षित करना चाहिए ताकि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ भविष्य तैयार कर सकें।
आर्य समाज और राजनीति पर मंथन
19 अक्टूबर को राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम में शामिल होंगे। इस दिन का प्रमुख विषय “आर्य समाज और राजनीति” होगा, जिसमें कई विद्वान और प्रमुख नेता आर्य समाज की विचारधारा और उसकी राजनीतिक प्रासंगिकता पर चर्चा करेंगे। इसके अलावा, “आर्य समाज और सोशल मीडिया” पर भी मंथन किया जाएगा, जिसमें सोशल मीडिया के प्रभाव और इसके माध्यम से आर्य समाज की विचारधारा के प्रचार-प्रसार के विषय पर विचार किया जाएगा।
20 अक्टूबर को मेले का समापन
तीन दिवसीय मेले का समापन 20 अक्टूबर को होगा। इस दिन कार्यक्रम में पूर्व लोकायुक्त सज्जन सिंह कोठारी मुख्य अतिथि होंगे। समापन के दिन “आर्य समाज वर्तमान और भविष्य”, “स्वदेश रक्षा एवं शुद्धि” जैसे विषयों पर सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। शाम को गुरुकुल माउंट आबू की ओर से “गुरु दक्षिणा” नामक नाटिका का मंचन किया जाएगा, जो दर्शकों को आर्य समाज की शिक्षा और विचारधारा से अवगत कराएगी।
महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती पर आयोजित इस तीन दिवसीय मेले ने आर्य समाज की विचारधारा, गुरुकुल शिक्षा पद्धति, प्राकृतिक खेती, और आधुनिक समाज की चुनौतियों पर गहन विचार-विमर्श का अवसर प्रदान किया। आज, जब समाज तेजी से आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है, हमें अपनी प्राचीन परंपराओं और मूल्यों को सुरक्षित रखने की जरूरत है ताकि हम अपने भविष्य को एक सही दिशा में ले जा सकें।