शोभना शर्मा। सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में मंगलवार रात को उर्स से पहले संदल उतारने की रस्म पूरे धार्मिक उल्लास और श्रद्धा के साथ अदा की गई। यह रस्म ख्वाजा साहब के 813वें सालाना उर्स की तैयारी का हिस्सा है।
मगरिब की नमाज के बाद दरगाह के खादिमों ने ख्वाजा साहब की पाक मजार से संदल उतारने की प्रक्रिया शुरू की। जैसे ही संदल उतारा गया, इसे आस्ताना शरीफ में मौजूद जायरीनों में बांटना शुरू कर दिया गया। संदल पाने के लिए बड़ी संख्या में जायरीनों की भीड़ उमड़ी।
संदल उतारने की परंपरा और उसकी महत्ता
ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर संदल पेश करने और उसे उतारने की परंपरा गहरी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्ता रखती है।
प्रतिदिन चढ़ाया जाता है संदल: ख्वाजा साहब की मजार पर हर दिन दोपहर की खिदमत के समय संदल पेश किया जाता है। यह संदल मजार की पवित्रता और ख्वाजा साहब के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है।
उर्स से पहले उतारा जाता है संदल: साल भर चढ़ाए गए संदल को उर्स शुरू होने से ठीक पहले 28 चांद रात को उतारा जाता है।
जायरीनों में तकसीम: यह संदल खादिमों द्वारा जायरीनों में बांटा जाता है। तबर्रुक के रूप में इसे पाने के लिए श्रद्धालु बड़ी संख्या में उपस्थित होते हैं।
आस्था और मान्यता
ख्वाजा गरीब नवाज के संदल को लेकर गहरी आस्था जुड़ी हुई है।
ऐसा माना जाता है कि यह संदल बरकत का प्रतीक है और इसे पानी में घोलकर पीने से बीमारियां ठीक हो सकती हैं।
जायरीन इस पवित्र संदल को अपने घरों में ले जाकर इसे सुरक्षित रखते हैं या जरूरतमंदों को इसका लाभ पहुंचाते हैं।
उर्स के दौरान दरगाह में आने वाले श्रद्धालु इस संदल को विशेष रूप से प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।
जायरीनों की भीड़ और उल्लास
संदल उतारने की रस्म के दौरान दरगाह में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। लोग ख्वाजा साहब के आशीर्वाद और तबर्रुक के रूप में संदल पाने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचे।
दरगाह परिसर का माहौल सूफी परंपराओं और श्रद्धा से भरा हुआ था।
खादिमों ने पूरी विधि-विधान के साथ मजार से संदल उतारा और इसे जायरीनों में तकसीम किया।
उर्स के लिए विशेष तैयारियां
813वें उर्स के अवसर पर दरगाह में व्यापक तैयारियां की जा रही हैं। उर्स के दौरान देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु अजमेर शरीफ पहुंचते हैं।
संदल उतारने की रस्म उर्स की शुरुआत का प्रतीक है।
मजार को विशेष रूप से सजाया जाता है, और दरगाह में कई सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
सूफी परंपरा का अद्भुत संगम
संदल उतारने की रस्म ख्वाजा गरीब नवाज की सूफी परंपरा का जीवंत उदाहरण है। यह रस्म न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि सूफी संत के प्रति गहरी आस्था और भारतीय सांस्कृतिक विरासत का भी परिचायक है।