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अजमेर दरगाह में 4 फरवरी को मनाया जाएगा वसंत

अजमेर दरगाह में 4 फरवरी को मनाया जाएगा वसंत

शोभना शर्मा। राजस्थान के अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में 4 फरवरी को बसंत उत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा। इस मौके पर दरगाह में पारंपरिक तरीके से बसंत पेश किया जाएगा, जिसमें सूफी संगीत की गूंज सुनाई देगी। इस खास अवसर पर शाही कव्वाल असरार हुसैन की पार्टी और अन्य कव्वाल सूफियाना कलाम पेश करेंगे।

दरगाह से निकलेगा बसंत जुलूस

बसंत की रस्म को पूरी श्रद्धा और परंपरा के साथ निभाया जाएगा। इस अवसर पर दरगाह दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन अली के बेटे सैयद नसरुद्दीन चिश्ती और खुद्दाम-ए-ख्वाजा विशेष रूप से मौजूद रहेंगे। सुबह लगभग 10 बजे दरगाह के निज़ाम गेट से बसंत जुलूस रवाना होगा, जिसमें शाही कव्वाल और उनके साथी हाथों में फूलों के गुलदस्ते लिए चलेंगे

जुलूस के दौरान कव्वाल “आज वसंत मना ले सुहागिन…”, “ख्वाजा मोइनुद्दीन के दर आती है बसंत…” और अन्य सूफियाना कलाम पेश करेंगे। इस दौरान भक्तों और अनुयायियों का उत्साह देखते ही बनेगा।

ऐसे तय करेगा जुलूस अपना सफर

बसंत जुलूस बुलंद दरवाजा और शाहजहांनी गेट होते हुए अहाता-ए-नूर पहुंचेगा। यहां से शाही कव्वाल आस्ताना शरीफ जाएंगे और ख्वाजा गरीब नवाज की मजार शरीफ पर फूलों का गुलदस्ता चढ़ाएंगे। इस दौरान पूरे परिसर में सूफियाना संगीत और इबादत का माहौल होगा।

ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में बसंत की परंपरा

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में बसंत मनाने की परंपरा सदियों पुरानी है, जिसकी जड़ें सूफी परंपराओं से जुड़ी हुई हैं।

कहा जाता है कि हजरत निज़ामुद्दीन औलिया अपने भांजे तकीउद्दीन नूह के इंतकाल के बाद अत्यंत दुखी रहने लगे थे। उन्हें उदास देखकर उनके प्रिय शिष्य हजरत अमीर खुसरो ने एक खास गीत और शब्दों के जरिए बसंत पेश की

अमीर खुसरो ने उन्हें पीले फूल भेंट किए और खुशी का माहौल बनाने की कोशिश की। इसके बाद से ही सूफी संतों की दरगाहों पर बसंत पेश करने की परंपरा शुरू हो गई, जो आज भी उसी श्रद्धा और उत्साह के साथ निभाई जाती है।

बसंत उत्सव की खासियत

  • सूफियाना कलाम और कव्वाली: इस मौके पर शाही कव्वाल अपनी पार्टी के साथ सूफियाना कलाम पेश करेंगे, जिससे पूरे माहौल में आध्यात्मिकता का एहसास होगा।

  • दरगाह में विशेष सजावट: इस अवसर पर दरगाह को खूबसूरत फूलों से सजाया जाएगा और इबादत का खास माहौल रहेगा।

  • परंपरा और आस्था का संगम: यह उत्सव सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सूफी संस्कृति की जीवंत झलक भी पेश करता है।

बसंत की महत्ता और आध्यात्मिक संदेश

बसंत का यह उत्सव सूफी संतों की भक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। यह त्योहार सभी धर्मों और संप्रदायों के लोगों को एक साथ लाने का कार्य करता है और सूफीवाद के प्रेम और सहिष्णुता के संदेश को आगे बढ़ाता है।

 

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