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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अराजकता पर कड़ा संदेश

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अराजकता पर कड़ा संदेश

मनीषा शर्मा। हाल ही में जयपुर में आयोजित चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने वक्तव्य में देश के मौजूदा सामाजिक और जनसांख्यिकीय परिदृश्य पर गंभीर चेतावनी दी। उन्होंने अराजकता फैलाने वाली शक्तियों की आलोचना करते हुए कहा कि ये तत्व स्वार्थ के लिए राष्ट्रीय एकता और सामाजिक सद्भाव को खतरे में डाल रहे हैं। उपराष्ट्रपति ने इन तत्वों को “अराजकता के चैंपियन” की संज्ञा देते हुए कहा कि ये शक्तियां जाति, पंथ, और समुदाय के आधार पर समाज को बांटने की साजिश रच रही हैं, जो देश के सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर सकती हैं।

धनखड़ ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग स्वार्थ की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय हित का त्याग करने में संकोच नहीं करते और अपने निजी लाभ के लिए सामाजिक असंतुलन को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग व्यक्तिगत स्वार्थ और अगले दिन की सुर्खियों के लिए देश की अखंडता और एकता से समझौता करने के लिए तत्पर हैं, जो एक गंभीर समस्या है।

राजनीतिक शक्ति और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पवित्रता

धनखड़ ने इस बात पर जोर दिया कि राजनीतिक शक्ति जनता की इच्छा और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सत्ता की पिपासा और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से प्रेरित होकर देश को किसी भी प्रकार की राजनीतिक अस्थिरता और असंतुलन की ओर नहीं धकेला जाना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि कुछ लोग भारत की प्रगति को पचा नहीं पा रहे हैं और उसके विकास को अवरुद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं, जो अत्यधिक चिंता का विषय है।

जनसांख्यिकीय असंतुलन का खतरा

धनखड़ ने अपने बयान में जनसांख्यिकीय असंतुलन के खतरों पर विशेष रूप से ध्यान आकृष्ट किया। उन्होंने कहा कि देश में बढ़ रहे जनसांख्यिकीय असंतुलन के परिणाम परमाणु बम के समान ही विनाशकारी हो सकते हैं। उनका मानना है कि कुछ क्षेत्रों में आबादी का उद्देश्यपूर्ण बदलाव उन क्षेत्रों को राजनीतिक किलों में बदल रहा है, जहां लोकतंत्र अपना मूल उद्देश्य खो चुका है। उपराष्ट्रपति ने इसे ‘डेमोग्राफिक विकार’ कहा और इसके गंभीर परिणामों की ओर इशारा किया।

धनखड़ के अनुसार, देश में हो रहे जनसांख्यिकीय बदलाव प्राकृतिक जनसांख्यिकीय परिवर्तन नहीं हैं, बल्कि कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा रणनीतिक उद्देश्य से किए गए परिवर्तन हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे बदलाव भारत के मौलिक सांस्कृतिक मूल्यों, समाज और लोकतांत्रिक ढांचे के लिए गंभीर खतरा हो सकते हैं।

डेमोग्राफिक असंतुलन से उभरे विकार

धनखड़ ने अपने वक्तव्य में कहा कि कुछ देशों में जनसांख्यिकीय असंतुलन के कारण उनकी पहचान लगभग खत्म हो चुकी है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत जैसे बहुसंख्यक देश हमेशा सहिष्णुता और स्वागत की नीति अपनाते हैं, लेकिन इसी का दुरुपयोग कर देश को आंतरिक विभाजन की ओर धकेलने का प्रयास भी हो रहा है। उनका मानना है कि इस तरह की विचारधारा में बहुमत का उद्देश्य केवल क्रूरता और अधिनायकवाद को बढ़ावा देना होता है, जो किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए घातक है।

जनसांख्यिकीय असंतुलन के दीर्घकालिक प्रभाव

धनखड़ ने भारत में बढ़ते जनसांख्यिकीय असंतुलन पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अगर इस मुद्दे पर अभी ध्यान नहीं दिया गया, तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक संरचना के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। उन्होंने इसे “अस्तित्व संबंधी खतरा” बताया। उन्होंने कहा कि जिन देशों में जनसांख्यिकीय असंतुलन से राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न हुई, वे अपनी सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान को बचाने में असमर्थ रहे।

सामाजिक सौहार्द्र और भारतीयता की रक्षा की अपील

उपराष्ट्रपति ने अपने वक्तव्य के अंत में समाज में सौहार्द्र बनाए रखने और भारतीयता के साझा सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करने की अपील की। उनका मानना है कि हमें समाज में एक सकारात्मक और संतुलित वातावरण का निर्माण करना चाहिए और उन तत्वों का बहिष्कार करना चाहिए जो समाज में विभाजन और असंतुलन लाने का प्रयास कर रहे हैं।

उपराष्ट्रपति का यह बयान देश के मौजूदा जनसांख्यिकीय और राजनीतिक परिदृश्य में जनता के लिए एक चेतावनी स्वरूप है। उनकी चिंता है कि यदि इन मुद्दों पर अभी ध्यान नहीं दिया गया, तो इसका दुष्परिणाम देश की एकता, अखंडता और लोकतांत्रिक संरचना पर हो सकता है। धनखड़ ने इस बयान के जरिए जनता और सरकार दोनों को आगाह करते हुए कहा कि हमें अपनी सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक संतुलन की सुरक्षा के लिए एकजुट होना होगा।

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