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भारतीय अर्थव्यवस्था: GDP और GVA में गिरावट क्यों?

भारतीय अर्थव्यवस्था: GDP और GVA में गिरावट क्यों?

शोभना शर्मा।  भारत की अर्थव्यवस्था एक बार फिर आर्थिक सुस्ती के दौर से गुजर रही है। वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में GDP (सकल घरेलू उत्पाद) ग्रोथ सालाना आधार पर 8.1% से गिरकर 5.4% रह गई है। यह पिछले दो वर्षों का सबसे निचला स्तर है। GVA (सकल मूल्य वर्धन) भी इस दौरान 7.7% से घटकर 5.6% हो गया। ये आंकड़े न केवल अनुमानों से कम रहे हैं, बल्कि आर्थिक नीति निर्माताओं के लिए एक बड़ी चुनौती भी बन गए हैं।

GDP और GVA में गिरावट: सेक्टर्स का प्रदर्शन

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, कई प्रमुख सेक्टर्स में धीमी वृद्धि और नकारात्मक प्रदर्शन ने GDP और GVA को प्रभावित किया है।

  1. कृषि क्षेत्र:
    जुलाई-सितंबर तिमाही में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 3.5% रही, जो पिछले साल की समान अवधि में 1.7% थी। यह वृद्धि सुखद संकेत देती है, लेकिन अन्य सेक्टर्स के कमजोर प्रदर्शन की भरपाई नहीं कर पाई।
  2. विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र:
    विनिर्माण क्षेत्र में सुस्ती जारी रही। इसकी ग्रोथ 14.3% से गिरकर केवल 2.2% रह गई। यह गिरावट आर्थिक विकास के लिए चिंता का प्रमुख कारण है क्योंकि यह क्षेत्र रोजगार और निर्यात के लिए अहम है।
  3. माइनिंग सेक्टर:
    माइनिंग सेक्टर में तेज गिरावट दर्ज की गई। पिछले साल की तुलना में यह 11.1% से घटकर -0.1% (YoY) पर आ गया।
  4. प्राइवेट कंजम्पशन:
    प्राइवेट कंजम्पशन एक्सपेंडेचर में थोड़ी राहत देखने को मिली। यह 2.6% से बढ़कर 6% हो गई। हालांकि, सरकारी कंजम्पशन ग्रोथ 14% से घटकर 4.4% (YoY) पर आ गई।
  5. कैपिटल फॉर्मेशन:
    कैपिटल फॉर्मेशन ग्रोथ 11.6% से गिरकर 5.4% (YoY) रह गई। यह संकेत करता है कि निवेश में कमी आ रही है, जो लंबे समय में आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकती है।
  6. सेवा क्षेत्र:
    सर्विस सेक्टर में मामूली वृद्धि देखी गई। यह 6% से बढ़कर 7.1% (YoY) हो गई।

GDP में गिरावट का असर और कारण

वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में भारत की GDP ग्रोथ 5.4% तक गिर गई, जो अनुमानित 6.5% से काफी कम है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस गिरावट के पीछे कई कारण हैं, जिनमें वैश्विक आर्थिक मंदी, आपूर्ति श्रृंखला की बाधाएं, निवेश में कमी और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की गिरावट प्रमुख हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में GDP ग्रोथ 6.7% थी, जो अब घटकर 5.4% हो गई है। इसके साथ ही, वित्त वर्ष की पहली छमाही में GDP वृद्धि का औसत केवल 6% रहा है।

भारत बनाम अन्य देश: चीन से बेहतर लेकिन चिंता बरकरार

हालांकि, भारत ने प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। उदाहरण के लिए, चीन की GDP ग्रोथ इस तिमाही में 4.6% रही, जो भारत से कम है। फिर भी, घरेलू स्तर पर सेक्टर्स की कमजोर स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता पर सवाल खड़े कर रही है।

कृषि क्षेत्र में सुधार लेकिन मैन्युफैक्चरिंग में गिरावट

कृषि क्षेत्र ने 3.5% की ग्रोथ के साथ बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन मैन्युफैक्चरिंग और माइनिंग जैसे सेक्टर्स में गिरावट ने समग्र GDP पर नकारात्मक प्रभाव डाला। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में पिछले साल की 14.3% की वृद्धि अब घटकर केवल 2.2% रह गई है, जो इस क्षेत्र के लिए बड़े झटके के समान है।

GVA में गिरावट: व्यापक प्रभाव

GVA, जो अर्थव्यवस्था के उत्पादन के मूल्य को मापता है, 7.7% से घटकर 5.6% हो गया है। GVA में गिरावट से साफ है कि देश के उत्पादक क्षेत्र उतने मजबूत नहीं हैं जितने होने चाहिए।

आर्थिक सुधार की दिशा में क्या करना होगा?

भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए निम्नलिखित कदम जरूरी हैं:

  1. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को पुनर्जीवित करना:
    मैन्युफैक्चरिंग में निवेश बढ़ाने और रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए सरकार को प्रोत्साहन योजनाएं लानी होंगी।
  2. निजी निवेश को प्रोत्साहन:
    निवेश में तेजी लाने के लिए नीतिगत सुधार और बेहतर क्रेडिट सुविधाओं की जरूरत है।
  3. वैश्विक बाजार पर ध्यान:
    भारत को अपने निर्यात को बढ़ावा देने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बेहतर स्थान हासिल करने के लिए रणनीतिक कदम उठाने होंगे।
  4. कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों का विकास:
    कृषि में वृद्धि को स्थिर बनाए रखने और ग्रामीण मांग को बढ़ावा देने के लिए सरकारी नीतियों को और अधिक सशक्त बनाना होगा।

 आर्थिक सुस्ती से उबरने की जरूरत

भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बनी हुई है, लेकिन धीमी GDP और GVA ग्रोथ ने चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। विनिर्माण और माइनिंग जैसे क्षेत्रों में गिरावट ने स्पष्ट कर दिया है कि आर्थिक नीतियों में सुधार की आवश्यकता है। कृषि और प्राइवेट कंजम्पशन में वृद्धि सकारात्मक संकेत दे रही है, लेकिन इसे व्यापक सुधारों के साथ संतुलित करना होगा।

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