शोभना शर्मा। कुंभ मेला, जो हर 12 साल में चार पवित्र स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है, भारतीय संस्कृति और धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह पौराणिक कथाओं, खगोलीय घटनाओं और आध्यात्मिक महत्व से भी जुड़ा हुआ है। आइए जानते हैं कि कुंभ मेला क्यों लगता है और इसके पीछे की कहानी क्या है।
कुंभ मेला का पौराणिक महत्व
कुंभ मेला का आयोजन पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। इस मंथन के दौरान अमृत का एक कलश (कुंभ) निकला, जिसे असुरों से बचाने के लिए देवताओं ने भागना शुरू किया। भागते समय अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिरीं। इसलिए, इन स्थानों को पवित्र माना गया और यहां कुंभ मेले का आयोजन किया जाने लगा।
हरिद्वार में अमृत की बूंदें ब्रह्म कुंड में गिरी थीं, जबकि उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे, नासिक में गोदावरी नदी के तट पर और प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर कुंभ मेला आयोजित होता है। इन स्थानों पर स्नान करने से श्रद्धालुओं को पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का विश्वास होता है।
कुंभ मेला का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
कुंभ मेला का मुख्य उद्देश्य श्रद्धालुओं को आत्म शुद्धि का अवसर प्रदान करना है। मान्यता है कि कुंभ मेला के दौरान इन पवित्र स्थानों पर स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ मेले में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान करने से आत्मा की शुद्धि होती है। यह मेला साधु-संतों, गुरुओं और श्रद्धालुओं के मिलन का केंद्र है, जहां ज्ञान, भक्ति और सेवा का आदान-प्रदान होता है।
कुंभ मेला हर 12 साल में क्यों होता है?
कुंभ मेला की तिथियां खगोलीय घटनाओं के आधार पर तय होती हैं। बृहस्पति ग्रह और सूर्य की स्थिति का कुंभ मेले से गहरा संबंध है। जब बृहस्पति ग्रह कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मकर राशि में होता है, तब कुंभ मेले का आयोजन होता है।
बृहस्पति को अपनी कक्षा में 12 साल का समय लगता है, इसलिए कुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। हिंदू ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियां होती हैं, जो 12 महीनों का प्रतिनिधित्व करती हैं। कुंभ राशि में बृहस्पति और सूर्य के आने पर यह मेला आयोजित होता है।
इसके अलावा, 12 साल का चक्र मानव जीवन में एक विशेष ऊर्जा परिवर्तन को दर्शाता है। यह समय आत्मशुद्धि, आस्था और ध्यान के लिए उपयुक्त माना गया है। कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी है, जहां लाखों लोग एकत्रित होते हैं और अपने अनुभव साझा करते हैं।
कुंभ मेले का आयोजन
कुंभ मेले का आयोजन विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग समय पर होता है। हरिद्वार में कुंभ मेला हर 12 साल में, प्रयागराज में हर 12 साल में, उज्जैन में हर 12 साल में और नासिक में हर 12 साल में आयोजित होता है। इन चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन एक विशेष चक्र के अनुसार होता है, जो खगोलीय घटनाओं से प्रभावित होता है।