मनीषा शर्मा। राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव ने विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा आयोजित लीगल एड डिफेंस कौंसिल की एक दिवसीय कार्यशाला में सिस्टम की बड़ी खामी की ओर इशारा किया। उन्होंने बताया कि गरीब व्यक्ति को जमानत मिलने के बावजूद जेल से बाहर आने में दिक्कत होती है क्योंकि वह बेल बॉन्ड भरने और सिक्योरिटी जमा करने में असमर्थ रहता है।
सीजे श्रीवास्तव ने इसे न्याय व्यवस्था की विफलता (System Failure) करार दिया और कहा कि आज तक इस समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं निकाला गया। उन्होंने जेलों में बढ़ती भीड़ और गरीबों की न्याय तक पहुंच में आने वाली दिक्कतों को लेकर चिंता जताई और कहा कि लीगल एड डिफेंस कौंसिल को इस दिशा में और अधिक सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
गरीबों के लिए जमानत भी मुश्किल क्यों?
मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव ने बताया कि एक गरीब व्यक्ति पर मुकदमा दर्ज होता है, उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाता है, और फिर उसे कानूनी सहायता मिलती है। कोर्ट से बेल मिलने के बावजूद, वह जेल से बाहर नहीं आ पाता क्योंकि वह जमानत की शर्तें पूरी नहीं कर सकता।
- बेल बॉन्ड भरने के लिए आवश्यक राशि गरीबों के लिए बहुत अधिक होती है।
- जमानत मिलने के बावजूद परिवार वाले बेल बॉन्ड भरने की स्थिति में नहीं होते।
- जेल प्रशासन और न्यायिक प्रणाली में इस समस्या की ओर ध्यान नहीं दिया जाता।
उन्होंने कहा कि यह न्याय व्यवस्था की असफलता है कि आज तक इस समस्या को कोई समझ नहीं पाया और इसे सुलझाने का प्रयास नहीं किया गया।
लीगल एड डिफेंस कौंसिल की महत्वपूर्ण भूमिका
सीजे श्रीवास्तव ने लीगल एड डिफेंस कौंसिल (Legal Aid Defense Counsel) को इस समस्या को हल करने के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी बताया।
उन्होंने कहा कि कानूनी सहायता देने वाले वकीलों को सिर्फ कोर्ट में केस लड़ने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें आरोपी के परिवार से संपर्क कर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जमानत मिलने के बाद वह जेल से बाहर आ सके।
जेल विजिट करना अनिवार्य – लीगल एड वकीलों को जेलों में जाकर यह देखना चाहिए कि कौन-कौन से कैदी सिर्फ इस वजह से जेल में बंद हैं कि वे सिक्योरिटी जमा नहीं कर सकते।
फॉलो-अप जरूरी – यदि किसी गरीब को बेल मिली है, तो वकील को यह जांचना चाहिए कि वह बाहर आया या नहीं।
कोर्ट में याचिका दायर करना – यदि कोई व्यक्ति सिक्योरिटी की राशि जमा नहीं कर पा रहा है, तो कोर्ट को सूचित कर राहत दिलवाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।
जेलों में बढ़ती भीड़ और न्याय तक सीमित पहुंच
सीजे श्रीवास्तव ने कहा कि यह सिर्फ एक व्यक्ति की समस्या नहीं है, बल्कि इससे पूरी न्याय व्यवस्था प्रभावित हो रही है।
जेलों में भीड़ बढ़ रही है – कई कैदी अपनी सजा से अधिक समय जेल में बिता देते हैं क्योंकि वे जमानत की शर्तें पूरी नहीं कर सकते।
गरीबों के लिए न्याय महंगा हो जाता है – जो लोग कोर्ट में पेश होने में सक्षम नहीं होते, उनके लिए न्याय तक पहुंच नामुमकिन बन जाती है।
न्याय प्रणाली पर अतिरिक्त बोझ – जमानत न मिलने से सरकारी संसाधनों पर भी असर पड़ता है, क्योंकि अधिक कैदियों को जेलों में रखने के लिए सरकार को अधिक खर्च उठाना पड़ता है।
समाधान क्या हो सकता है?
मुख्य न्यायाधीश ने सुझाव दिया कि इस समस्या का समाधान निकालने के लिए नए कानूनी प्रावधानों और लीगल एड सिस्टम में सुधार की जरूरत है।
गरीब आरोपियों के लिए विशेष छूट – कोर्ट को ऐसे मामलों में जमानत की शर्तों को आसान बनाना चाहिए।
लीगल एड वकीलों को अधिक सक्रिय बनाना – कानूनी सहायता देने वाले वकीलों को सिर्फ कोर्ट तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि जेल प्रशासन से समन्वय कर आरोपियों की रिहाई सुनिश्चित करनी चाहिए।
न्याय प्रणाली में जागरूकता बढ़ाना – जेल अधिकारियों, पुलिस, न्यायिक अधिकारियों और कानूनी सहायता वकीलों को इस समस्या के प्रति अधिक संवेदनशील बनाना होगा।
सरकारी फंड से बेल सिक्योरिटी का भुगतान – गरीब आरोपियों के लिए सरकार को विशेष ‘बेल सिक्योरिटी फंड’ बनाना चाहिए, जिससे जरूरतमंदों को मदद मिल सके।